Politics: राज—शक्ति से प्रभावित होना या उससे भयभीत होना हमारी अज्ञानता, मूर्खता व कायरता की निशानी है
Politics: राज—शक्ति से प्रभावित होना या उससे भयभीत होना हमारी अज्ञानता, मूर्खता व कायरता की निशानी है
छोटा अखबार।
'न्यायपूर्ण व्यवस्था' का भ्रम या न्यायपूर्ण व्यवस्था की आस दो ऐसे महत्वपूर्ण कारण है जिसके कारण स्वयं 'जन—शक्ति', राज—शक्ति को मान्यता यानी कार्य करने की शक्ति प्रदान करती है।
यदि राज—शक्ति, 'जन—शक्ति' की सेवा एवं उसे न्यायपूर्ण व्यवस्था प्रदान करने की बजाय उस पर शासन करने का कुत्सित प्रयास करे तो जन—शक्ति को चाहिए कि वो 'राज—शक्ति' को मान्यता देना बंद कर दे और व्यवस्था में पारदर्शिता, जवाबदेहिता, जन सहभागिता एवं जन—हित सुनिश्चित करने के लिए स्वयं आगे आए और अपने ही द्वारा पैदा किए गए कृतघ्न प्रतिनिधियों पर लगाम लगाने में तनिक भी देरी ना करे ।
क्योंकि कर्तव्यविमुख एवं कृतघ्न प्रतिनिधियों की सहभागिता से बनाए जाने वाले कानून, हम मतदाताओं के हितों व अधिकारों को कुचलकर हमें पूंजीपतियों के अंतहीन शोषण के लिए लावारिस छोड़ देने की मंशा रखते हैं । याद रहे कृतघ्न प्रतिनिधियों पर लगाम लगाने में हम जितनी अधिक देरी करेगें, हमारी समस्याओं में उतनी ही अधिक वृद्धि होती चली जाएगी, अत: जल्द से जल्द हमें अपने अपने जनप्रतिनिधि पर 'जन नियंत्रण' स्थापित करने का आगाज़ करना ही होगा ।
लोकतांत्रिक व्यवस्था में ये काम हम अपने वोट को 'दान' करने की बजाय उसे सशर्त बनाकर बेहद आसानी से कर सकते हैं, इसके लिए हमें सिर्फ दो काम करने हैं —1.बिना लिखित सर्विस एग्रीमेंट किसी भी प्रत्याशी को वोट ना देने का दृढ़ संकल्प, 2. जनप्रतिनिधि पर नियंत्रण एवं उसके मार्गदर्शन हेतु बूथ लेवल के जागरूक नागरिकों की सहभागिता युक्त समितियों का विषयवार गठन व उनका समन्वय ।
कभी कभी अहंकार एवं मूर्खतावश 'राज—शक्ति', 'जन—शक्ति' के दमन के लिए पुलिस एवं सेना की सहायता लेने लगती है और बल—प्रयोग से 'जन—शक्ति' को कुचलने का प्रयास करती है । वो ये भूल जाती है कि पुलिस व सेना का बल 'जन—शक्ति' के आगे ना सिर्फ नगण्य होता है वरन् पुलिस व सेना के लोग भी उसी जन—शक्ति का एक अभिन्न अंग होते हैं ।
'राज—शक्ति' की 'बल प्रयोग' की ताकत सिर्फ तभी तक प्रभावी हो सकती है जब तक 'जन—शक्ति' बिखरी हुई हो।
यदि 'जन—शक्ति' को भयमुक्त होकर 'राज—शक्ति' से वो काम कराने हैं, जिनके लिए 'जन—शक्ति' ने 'राज—शक्ति' को मान्यता दी थी तो 'जन—शक्ति' को दलबंदी या राज—शक्ति की बांटो और राज करो की नीति में फंसने की बजाए चुनाव मैदान में उतरने वाले हर उस प्रत्याशी की 'वोटबंदी' करनी होगी जो जनता को एक 'लिखित सर्विस एग्रीमेंट' साईन करके करके देने से इंकार कर दे ।
याद रहे देश में व्याप्त समस्त अव्यवस्थाओं व समस्याओं का मूल स्रोत 'राजनीतिक निर्णय या कानून' ही हैं। यदि हमने अपने प्रतिनिधियों पर नियंत्रण स्थापित करके देश में कानून निर्माण की प्रक्रिया को जनता के नियंत्रण में ले लिया और कानून जनमत संग्रह के माध्यम में बनने लग गए तो विकास की गति आज की तुलना में लगभग 90 गुना तेज़ हो जाएगी, 'जन—हित' राज्य की नीति यानी राजनीति का केन्द्रीय विषय बन जाएगा और हमारी लगभग सभी समस्याओं का अंत हो जाएगा।
'जन संप्रभुता संघ' के रूप में हम कदम बढ़ा चुके हैं, मिशन में जुट चुके हैं , क्या आप भी जन—नाद की इस आवाज को गुंजायमान करने में सहभागी बनना चाहते हैं?
यदि हाँ तो अविलम्ब 'जन संप्रभुता संघ' से जुड़ें और समस्या मुक्त भारत के सपने को सच करने में अपने हिस्से का योगदान देने में पीछे ना रहें।
—अनिल यादव
संपादक, बैस्ट रिपोर्टर न्यूज
(9414349467)
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