Political NEWS: क्या हुआ तेरा वादा..........? "निर्णय लेने में भजनलाल सरकार फिसड्डी"

Political NEWS: क्या हुआ तेरा वादा..........? "निर्णय लेने में भजनलाल सरकार फिसड्डी"


-महेश झालानी


छोटा अखबार।

ऐसा प्रतीत होता है कि भजनलाल की सरकार केवल घोषणा करने में सिद्धहस्त है । कामकाज करने या वादों की पूर्ति में सरकार फिसड्डी साबित हुई है। न एसआई की परीक्षा निरस्त हुई और न ही आरपीएससी में धांधली करने वालो का बाल बांका हुआ। राजनीतिक नियुक्तियां भी लगता है गहलोत की तर्ज पर आखिरी समय मे होगी । आरपीएससी चेयरमैन का पद काफी समय से रिक्त है। परिणामतः इसका कामकाज अपेक्षित गति से नही हो पा रहा है । सबसे बड़ा मामला एसआई की परीक्षा की निरस्ती के अलावा गहलोत राज में बनाए गए नए जिलों की समाप्ति का है । सेवानिवृत आईएएस ललित पंवार को रिपोर्ट सौपे काफी वक्त बीत चुका है । लेकिन सरकार इस बारे में कोई निर्णय लेने की हिम्मत नही जुटा पा रही है । लगता नही है कि सरकार इस बारे में शीघ्र ही कोई निर्णय कर पाएगी । यदि नए जिलों को समाप्त कर दिया गया तो गदर मचना स्वाभाविक है । 

उप मुख्यमंत्री प्रेमचंद बैरवा दूदू का प्रतिनिधित्व करते है। अगर सरकार ने इस जिले को समाप्त कर दिया तो उनका दूदू में प्रवेश करना मुश्किल हो जाएगा  हो सकता है कि सरकार के निर्णय के खिलाफ बैरवा को ही सड़को पर उतरना पड़े। कमोबेश अन्य जिलों की भी यही स्थिति होने वाली है। यद्यपि केंद्रीय मंत्री और अलवर के सांसद भूपेंद्र सिंह यादव ने जनता को भरोसा दिलाया है कि खैरथल जिले को समाप्त नही किया जाएगा। लेकिन सरकार ने इस जिले को समाप्त करने का निर्णय लिया तो बीजेपी को नाको चने चबाने पड़ेंगे। उधर 1 जनवरी से जनगणना प्रारम्भ होने जा रही है। सरकार को इससे पहले निर्णय लेना पड़ेगा । 

आपको ध्यान होगा कि भजनलाल की सरकार द्वारा गहलोत द्वारा बनाए गए 17 जिलो को समाप्त करने की समीक्षा के लिए सेवानिवृत आईएएस ललित पंवार की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया था। पंवार ने सभी जिलों का दौरा कर उनकी भौगोलिक और आर्थिक स्थिति का विश्लेषण करते हुए अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौप दी । मंत्रिमण्डलीय उप समिति को निर्णय करना है कि कौनसे जिले समाप्त किये जाए तथा किनको बरकरार रखने की आवश्यकता है । 

जिले बनाना जितना कठिन कार्य था, उससे दुरूह कार्य उनको समाप्त करना है । अगर वर्तमान सरकार ने एक भी जिले के साथ छेड़छाड़ की तो बीजेपी वाले भी बगावत पर उतारू हो जाएंगे। परिणामतः इसका राजनीतिक खामियाजा बीजेपी को भुगतना लाजिमी है। हालांकि सरकार ने जिलो को समाप्त करने के लिए मंत्रिमण्डलीय उप समिति का गठन कर दिया है। लेकिन हकीकत यह है कि स्वयं उप मुख्यमंत्री प्रेमचन्द बैरवा सहित कई विधायक भी जिलो की समाप्ति के पक्ष में नही है । 

जिस प्रकार जिलो की समाप्ति की समीक्षा के लिए ललित पंवार कमेटी का गठन किया गया था, उसी प्रकार नए जिलो के गठन हेतु भी तत्कालीन सरकार द्वारा रामलुभाया की अध्यक्षयता में कमेटी गठित की गई थी। रामलुभाया ने सभी पहलुओं का अध्ययन करने के बाद ही नए जिलो के गठन की सिफारिश की थी। महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि जिलो के गठन से पहले वित्त विभाग की स्वीकृति आवश्यक होती है। नए जिलो के गठन की स्वीकृति अखिल अरोड़ा ने अतिरिक्त मुख्य सचिव (वित्त) की हैसियत से दी थी। अरोड़ा आज भी उसी पद पर कार्यरत है। ऐसे में वे पूर्ववर्ती सरकार द्वारा गठित जिलो को भंग करने की स्वीकृति कैसे प्रदान कर सकते है ?

वर्तमान सरकार द्वारा तर्क दिया जा रहा है कि बहुत ही छोटे जिलो का गठन राजनीतिक लाभ के लिए किया गया था। बिल्कुल वाजिब तर्क है। हर पार्टी राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए सभी हथकंडो का इस्तेमाल करती है। गहलोत ने भी यही हथकंडा अपनाया था। लेकिन बीजेपी सरकार को यह भी देखना होगा कि गुजरात और मध्यप्रदेश मे भी राजनीतिक लाभ के लिए निवारी, प्रधुरना और डांग जैसे बहुत छोटे जिलो का गठन किया गया। फिर राजस्थान में जिले के गठन पर उज्र क्यों ?

राज्य सरकार को चाहिए कि वह रामलुभाया द्वारा सौपी रिपोर्ट का बारीकी से अध्ययन करें। अपनी रिपोर्ट में रामलुभाया ने कोटपूतली व बहरोड़ के बीच तथा खैरथल के निकट औद्योगिक क्षेत्र विकसित करने की सिफारिश की थी। दिल्ली, गुड़गांव, फरीदाबाद, गाजियाबाद आदि में अब पैर रखने की जगह नही बची है। ऐसे में दिल्ली की भीड़ को कम करने और औद्योगिक विकास के लिहाज से खैरथल, बहरोड़ और कोटपूतली में भिवाड़ी की तर्ज पर विस्तृत औद्योगिक क्षेत्र विकसित किया जाना चाहिए। एनसीआर (नेशनल केपिटल रीजन) योजना का बुनियादी उद्देश्य भी यही था । 

सरकार को इस तथ्य को नजरअंदाज नही करना चाहिए कि जिलो के गठन से न केवल विकास की गति बढ़ेगी बल्कि रोजगार में भी बहुत ज्यादा इज़ाफ़ा होगा। इसके अलावा जमीनों के भाव बढ़ना लाजिमी है। ऐसे में सरकार को स्टाम्प ड्यूटी से जिलो के गठन के खर्च से ज्यादा आय में इजाफा होगा। विदेशी दौरा करने से निवेश नही बढ़ेगा। सरकार को प्रेक्टिकल अप्रोच फार्मूले को अपनाना चाहिए।

वर्तमान सरकार द्वारा तर्क दिया जा रहा है कि बहुत ही छोटे जिलो का गठन राजनीतिक लाभ के लिए किया गया था। बिल्कुल वाजिब तर्क है। हर पार्टी राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए सभी हथकंडो का इस्तेमाल करती है। गहलोत ने भी यही हथकंडा अपनाया था। लेकिन बीजेपी सरकार को यह भी देखना होगा कि गुजरात और मध्यप्रदेश मे भी राजनीतिक लाभ के लिए निवारी, प्रधुरना और डांग जैसे बहुत छोटे जिलो का गठन किया गया। फिर राजस्थान में जिले के गठन पर उज्र क्यों ?

राज्य सरकार को चाहिए कि वह रामलुभाया द्वारा सौपी रिपोर्ट का बारीकी से अध्ययन करें। अपनी रिपोर्ट में रामलुभाया ने कोटपूतली व बहरोड़ के बीच तथा खैरथल के निकट औद्योगिक क्षेत्र विकसित करने की सिफारिश की थी। दिल्ली, गुड़गांव, फरीदाबाद, गाजियाबाद आदि में अब पैर रखने की जगह नही बची है। ऐसे में दिल्ली की भीड़ को कम करने और औद्योगिक विकास के लिहाज से खैरथल, बहरोड़ और कोटपूतली में भिवाड़ी की तर्ज पर विस्तृत औद्योगिक क्षेत्र विकसित किया जाना चाहिए। एनसीआर (नेशनल केपिटल रीजन) योजना का बुनियादी उद्देश्य भी यही था। 

सरकार को इस तथ्य को नजरअंदाज नही करना चाहिए कि जिलो के गठन से न केवल विकास की गति बढ़ेगी बल्कि रोजगार में भी बहुत ज्यादा इज़ाफ़ा होगा। इसके अलावा जमीनों के भाव बढ़ना लाजिमी है। ऐसे में सरकार को स्टाम्प ड्यूटी से जिलो के गठन के खर्च से ज्यादा आय में इजाफा होगा। विदेशी दौरा करने से निवेश नही बढ़ेगा। सरकार को प्रेक्टिकल अप्रोच फार्मूले को अपनाना चाहिए ।

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