अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन करता है, सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन करता है, सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग
राज बदल गया लेकिन सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग का रिवाज नहीं
बड़ा सवाल, क्या सरकार सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के अफसर-कर्मचारियों पर राजस्थान सिविल सेवा (पेंशन) नियम 1996 के नियम 53(1) के तहत कार्यवाई करती है या फिर हाथी के दांत दिखाने के ओर खाने के ओर कहावत को चरितार्थ।
छोटा अखबार।
प्रदेश में राज बदले हुये 5 महिनों से ज्यादा समय हो गया लेकिन सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग का रिवाज नहीं
बदला। विभाग वहीं पुराने रिवाज पर कायम है। विभाग की उत्पत्ति भी सरकार की योजनाओं
और उपलब्धियों को आमजन तक पहुंचाने और उनकी राय सरकार तक पहुंच के लिये की थी।
जिसके लिये सरकार प्रत्येक माह करोड़ो रुपये भी खर्च करती है।
सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग का एक मामला संज्ञान में
आया है। जिसमें सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पाबंदी लगा रखी है। जब
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक लगा दी तो ऐसे में आमजन की राय सरकार तक कैसे
पहुंच पायेगी।
मामला सोशल मीडिया के ट्यूटर का है। सूचना एवं
जनसम्पर्क विभाग ने अपना एक ट्यूटर हैंडल @DIPRRajasthan नाम से बना रखा है। इसके तहत विभाग सरकार की योजनाओं और उपलब्धियों का
बखान करता है लेकिन एक तरफा। ट्यूटर हैंडल
पर विभाग ने प्रतिक्रिया के बटन को बंद कर रखा है। इससे आमजन विभाग की पोस्ट पर
कोई प्रतिक्रिया नहीं दे पा रहा है। इस कारण सरकार को भी अंधरे में रखा गया है। जब
प्रतिक्रिया ही नहीं आयेगी तो सरकार को कैसे पता चलेगा कि जनता सराकार से क्या
चाहती है। क्या गलत है और क्या सही। वहीं अभिव्यक्ति या प्रतिक्रिया पर पाबंदी
लगाना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 का हनन माना
गया है।
आपको बतादें कि उपरोक्त विभाग का ये रिवाज पुराना है।
पूर्व साकार में भी ऐसे कई कांड हुए जिससे पूरे देश में विभाग और सरकार की बदनामी
भी हुई थी। उदाहरण के लिये पूर्व सरकार में पुरानी पैंशन को लेकर सरकार ने एक
विज्ञापन जारी किया था। विज्ञापन में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का नाम गलत छाप
दिया था। ऐसा एक बार नहीं हुआ, कई बार हुआ है।
आपको यह भी बतादें कि कुछ दिन पहले हि मुख्यमंत्री
भजनलाल शर्मा ने बड़े बाबूओ को लेकर एक बड़ी मीटिंग की थी। मीटिंग में श्री शर्मा
ने सभी बाबूओं से कहा था कि मीडिया रिपोर्ट को दुरूस्त करें। वहीं मुख्य सचिव
सुधांश पंत ने भी सभी विभागों को भ्रष्ट और नॉन परफॉर्मर अफसर और कर्मचारियों की
विभागवार लिस्ट तैयार करने के आदेश दिए थे। और ऐसे अफसर-कर्मचारियों को जबरन
रिटायर करने के प्रस्ताव तैयार करने को कहा है।
अब बड़ा सवाल ये है कि क्या सरकार इस विभाग के
अफसर-कर्मचारियों को राजस्थान सिविल सेवा (पेंशन) नियम 1996 के नियम 53(1) के तहत अनिवार्य रिटायरमेंट करती है या
हाथी के दांत दिखाने के ओर खाने के ओर कहावत को चरितार्थ करती है।
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