गहलोत की गद्दी पर फेवीकोल लगा है या उनके नीचे?
गहलोत की गद्दी पर फेवीकोल लगा है या उनके नीचे?
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
छोटा अखबार।
राजनीति में कुछ भी हो सकता है। कुछ भी यानि कुछ भी। सुई में धागे की तरह हाथी भी निकल सकता है। कम से कम कांग्रेस में तो यही हो रहा है। कल तक एक दूसरे की प्रभुसत्ता को मिट्टी में मिला देने की कसम खाने वाले अशोक गहलोत और सचिन पायलट टिकिट के बंटवारे में लगभग एक मत हो गए हैं।गहलोत ने कह दिया है कि मानेसर के बाड़े में बग़ावत करने वाले अधिकांश विधायकों को पुनः टिकिट दिया जा रहा है तो सचिन उनसे दो क़दम आगे निकल कर कह रहे हैं कि जिताऊ उम्मीदवार कोई हो उसे टिकिट दिया जाना चाहिए भले ही उसने सोनिया जी की अवमानना ही क्यों न की हो।
अशोक गहलोत अच्छी तरह से जानते हैं कि सचिन पायलट मुख्यमंत्री बनने का जो सपना देख रहे हैं उसके लिए उनके पास इस बार भी संख्या बल उनके मुक़ाबले नहीं आ सकेगा। उनकी गहलोत अपनी बोई हुई शानदार फ़सल को ख़ुद के लिए काटना चाहते हैं। यदि फ़सल में कीड़ा लगा हुआ होता तो शायद वह अपने लोगों को टिकिट दिए जाने और मानेसर वालों को टिकिट नहीं दिए जाने पर अड़ जाते ।उन्होंने ऐसा नहीं किया ।सभी को टिकिट दिए जाने पर सहमति व्यक्त कर दी।
यहाँ बता दूं कि सचिन पायलट के जितने लोगों को टिकिट दिए जा रहे हैं वह यदि सारे भी जीत जाएं तो उनका संख्या बल गहलोत की टीम से कम होगा। मानेसर के बाड़े में बन्द 18 विधायकों में से दावे के साथ सिर्फ 14 लोग ही वापस जीत जाएं तो बहुत होगा। यहाँ यह भी बता दूं कि पिछली बार जब सचिन प्रदेश अध्यक्ष थे तब उन्होंने अपने लगभग 124 नामों को टिकिट दिए थे जो बाद में पलटी खा गए और गहलोत के साथ हो लिए। इनमें से अधिकांश ने ही गहलोत के लिए बग़ावत के समय भी साथ दिया।
इस बार भी अधिकांश उन्ही लोगों को टिकिट मिल रहे हैं जो गहलोत की लिस्ट में हैं। ज़ाहिर है कि इनमें से जितने भी लोग जीत कर आएंगे वे गहलोत को ही समर्थन देंगे।
अब तो आप भी समझ गए होंगे कि क्यों गहलोत अक्सर ये जुमला कसते हैं कि वह तो मुख्यमंत्री की गद्दी छोड़ना चाहते हैं पर गद्दी उनको नहीँ छोड़ना चाहती। उन्होंने दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके यें कहा कि इस बार भी देखना गद्दी उनको ही पकड़े रखेगी।
मित्रों! संसार के वे पहले ऐसे नेता हैं जो यह कह रहे हैं कि वह गद्दी छोड़ना चाहते हैं गद्दी उनको नहीं छोड़ना चाहती। ज़रा कोई बताए कि गद्दी में फेवीकोल लगा है या अशोक गहलोत के नीचे। आख़िर क्या वज़ह है कि दोनों ही एक दूसरे के लिए ज़िन्दा हैं?
राजा राहुल यानि महात्मा बुद्ध जब सोती हुई अपनी पत्नी यशोधरा को राजगद्दी छोड़ कर सन्यासी हो गए तब उनके कोई फेवीकोल नहीं लगा था। वह आराम से राजपाठ छोड़ कर जंगलों में निकल गए मगर अशोक गहलोत को राजगद्दी नहीं छोड़ रही।
जबकि असलियत यह है कि पहले उनको सरदारपुरा से चुनाव जीतना होगा । यदि वहीं हार गए तो उनका फेवीकोल वहीं साफ़ हो जाएगा। राजगद्दी का फेवीकोल भी धरा रह जाएगा।
मेरे ख़याल से गहलोत का अभी से यह कहना कि राजगद्दी उनको छोड़ नहीं रही निरी मूर्खता है। पहले पार्टी को जीतने तो दो फिर गद्दी की बात करना । भाजपा को मिट्टी का खिलौना मत समझो।परिपाटी के हिसाब से तो कांग्रेस आने वाली ही नहीं। और हाँ ,सचिन व गहलोत के बीच हुए युध्द विराम और सचिन के इस वक्तव्य से कि यदि उम्मीदवार जिताऊ है तो उसको टिकिट दिया जाना चाहिए चाहे उसने सोनिया जी की अवमानना ही क्यों न की हो अब शान्ति धारीवाल ,महेश जोशी और धर्मेन्द्र राठौड़ के दरवाज़े टिकिट के लिए फिर खुल गए हैं। शानदार वक़ील हो तो हारा हुआ केस जितवा देता है।
गहलोत यदि अपने तीनों जिगर के टुकड़ों को टिकिट दिलवा देते हैं और सचिन उनके रास्ते की दीवार नहीं बनते हैं तो यह भी बहुत बड़ी जीत होगी। ये बात अलग है कि इस खेल में सोनिया और राहुल गांधी की इज़्ज़त का फलूदा बन जायेगा क्यों कि चुनाव समिति की बैठक में इन नामों के लिए उन्ही ने फच्चर ठोका था।
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