अपने गिरेबां में भी तो झांके भाजपा

 अपने गिरेबां में भी तो झांके भाजपा

 


—ओम माथुर


छोटा अखबार।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल लाल किले से भ्रष्टाचार, परिवारवाद और तुष्टीकरण को देश के विकास की बड़ी समस्याएं बताते हुए इनसे मुक्ति की अपील की। प्रधानमंत्री इससे पहले अविश्वास प्रस्ताव का जवाब देते यह मुद्दे संसद में उठा चुके हैं। इसमें कोई शक नहीं कि इससे कोई भी देशवासी असहमत नहीं होगा कि भ्रष्टाचार,राजनीति में परिवारवाद और तुष्टिकरण की राजनीति खत्म होनी चाहिए। लेकिन क्या खुद भाजपा भ्रष्टाचार के दाग से मुक्त है और खरा उतर रही है।

असम में तरुण गोगोई की कांग्रेस सरकार में हेमंत बिस्वा सरमा मंत्री थे। उन्हें सीबीआई ने शारदा चिटफंड घोटाले में आरोपी बनाया। लेकिन जैसे उन्होंने 2015 में भाजपा ज्वाइन की,उनकी फाइल बंद हो गई और अब वे असम के मुख्यमंत्री हैं। पश्चिम बंगाल में ममता सरकार के कद्दावर मंत्री व शारदा घोटाले के ही आरोपी शुभेंदु अधिकारी जब तक टीएमसी में रहे शारदा घोटाले में ईडी ने पूछताछ की। लेकिन जैसे ही वो भाजपा में आए ईमानदार हो गए और अब बंगाल विधानसभा में भाजपा विधायक दल के नेता है। महाराष्ट्र में नारायण राणे पर खुद भाजपा नेता किरीट सोमैया ने आदर्श सोसायटी घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाया। जांच शुरू हुई, बाद में वो भाजपा में शामिल हो गए और अभी केंद्र में मंत्री है। बिल्कुल ताजा मामला महाराष्ट्र में अजीत पवार का है, जिन पर 70 हजार करोड़ के सिंचाई घोटाले का आरोप है। गंभीर बात ये है कि इसे लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद सार्वजनिक मंच से आरोप लगाया था और उसके दो दिन बाद अजीत पवार एनसीपी को तोड़कर भाजपा के साथ आ गए और अब वह महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री है। इनके अलावा येदियुरप्पा, छगन भुजबल,मुकुल रॉय ( अभी भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष)और उन जैसे कई भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपी नेता भी भाजपा के साथ या भाजपा में ही फल फूल रहे हैं। 

ऐसे में मोदी किस नैतिक अधिकार से भ्रष्टाचार को मुद्दा बना रहे हैं। हां,अगर यह सब भाजपा से बाहर कर दिए जाएं या भाजपा इनका साथ छोड दे तो, प्रधानमंत्री और भाजपा को दूसरी पार्टियों के नेताओं पर भ्रष्टाचार के सवाल उठाने और उन्हें भ्रष्टाचारी कहने का अधिकार है। वैसे भ्रष्टाचार के हमाम में सब नंगे हैं और यह सब आरोपी की राजनीति लोगों को भ्रमित करने और वोट बटोरने की है।  सवाल यह भी है कि इन नेताओं में से लगभग सभी पर 2014 के बाद से ही गंभीर घोटालों के आरोप लगे हैं और तब से मोदी सरकार को 9 साल निकल गए हैं, इनमें से किसी पर भी कार्रवाई नहीं हुई। सिर्फ जांच एजेंसी ने पूछताछ की यह भाजपा में आकर पाकसाफ हो गए। न सिर्फ इनकी फाइलें ठंडे बस्तों में चली गई, बल्कि इन्हें केंद्र और राज्यों में महत्वपूर्ण पद देखकर नवाजा गया।  

      राजनीति में परिवारवाद से भी कहीं योग्य नेताओं का राजनीतिक कैरियर बर्बाद हो रहा है, लेकिन क्या यह सिर्फ विपक्षी पार्टियों में है। भाजपा में सब कुछ योग्यता के आधार पर चल रहा है। यह माना कि अधिकांश क्षेत्रीय दल परिवार की जागीर बन गए हैं। लेकिन भाजपा भी तो परिवारवाद से पूरी तरह कहां मुक्त है। उसके भी कई नेताओं की तीसरी या दूसरी पीढ़ी राजनीति में है। राजनाथ सिंह,कल्याण सिंह, विजयाराजे सिधिंया, रमनसिंह, प्रमोद महाजन,लालजी टंडन जैसे कई भाजपा नेता है या थे जिनकी दूसरी या तीसरी पीढी विधायक, मंत्री और सांसद है। और तो और भाजपा तो कांग्रेस के परिवारवाद को भी प्रश्रय दे रही है। कांग्रेसी नेताओं एके एंटनी,माधवराव सिंधिया, जितेंद्र प्रसाद, हेमवती नंदन बहुगुणा के परिजनों को पार्टी में शामिल कर पदों से नवाजा है। ऐसे में दूसरे दलों पर भ्रष्टाचार और परिवारवाद के आरोप लगाने वाले भाजपा को पहले अपने गिरेबान में झांक कर अपने घर को साफ करना चाहिए उसके बाद अगर वह इसे चुनावी मुद्दा बनाएगी तो ही उसे मतदाताओं का भरपूर समर्थन मिलेगा। 

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