केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में प्लास्टिक उत्पादों पर रोक, अंदर ले जाने पर जमा करवाने पड़ते हैं 50 रुपए प्रति उत्पाद
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में प्लास्टिक उत्पादों पर रोक, अंदर ले जाने पर जमा करवाने पड़ते हैं 50 रुपए प्रति उत्पाद
छोटा अखबार।
पक्षियों की नगरी के नाम से प्रसिद्ध जिला भरतपुर में स्थित केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में देश-विदेश से हजारों की संख्या में पक्षी प्रतिवर्ष आते है। ऐसे में केवलादेव ने विश्वस्तरीय पर्यटन के क्षेत्र में अपनी अनूठी पहचान कायम की है। स्थानीय भाषा में घना पक्षी विहार के नाम से पहचान रखने वाला केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान न केवल भरतपुर के लिए बल्कि सम्पूर्ण राज्य के लिए पर्यटन और आय का एक बड़ा साधन है। वेटलैंड्स, ग्रासलैंड्स के साथ इतिहास की घटनाओं को अपने आंचल में समेटे हुए केवलादेव पक्षियों के साथ चीतल, सांभर, अजगर एवं विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों का घर है। फ़्लोरा एवं फोना से समृद्ध घना यूं तो कई बार पानी की कमी से जूझा, परन्तु प्रशासनिक चेतना एवं सतर्कता के साथ समय रहते घना को बचा लिया गया। इस सबके बीच सबसे बड़ी चुनौती थी, केवलादेव को प्लास्टिक से बचाना। पर्यटकों के साथ पार्क के अंदर जाने वाला प्लास्टिक कई बार उनकी नासमझी की वजह से वन्यजीवों के लिए खतरा साबित होता है। हालाँकि केवलादेव उद्यान प्रशासन द्वारा समय-समय पर सफाई करवा कर एवं जगह-जगह डस्टबिन रखवाकर इस खतरे को रोकने के प्रयास किये जाते रहे हैं।
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के उप वन संरक्षक मानस सिंह द्वारा अनूठी पहल कर घना को प्लास्टिक मुक्त करने की दिशा में प्रयास किये जा रहे हैं। श्री मानस ने इस सम्बन्ध में जानकारी देते हुए बताया कि पर्यटकों द्वारा पार्क में लाये जाने वाले उत्पादों की प्रवेश द्वार पर चेकिंग की जाती है एवं प्रत्येक प्लास्टिक निर्मित उत्पाद पर 50 रुपये प्रति उत्पाद फीस जमा कर एक टैग लगा दिया जाता है। जब पर्यटक पार्क भ्रमण कर लौटते हैं तो टैग लगे हुए प्लास्टिक उत्पाद की वापसी सुनिश्चित की जाती है अन्यथा 50 रुपए जब्त कर लिए जाते हैं। उन्होंने बताया की इस पहल के परिणामस्वरूप पार्क में प्लास्टिक अब न के बराबर है, जिससे प्लास्टिक प्रदूषण से पार्क को बचाया जा रहा है।
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