डोटासरा के नेतृत्व में कांग्रेस का खेल खत्म
डोटासरा के नेतृत्व में कांग्रेस का खेल खत्म
—सत्य पारीक
छोटा अखबार।
गोविंद सिंह डोटासरा के नेतृत्व में प्रदेश कांग्रेस का खेल खत्म हो चुका है । डोटासरा को इनके चेचुओं के इलावा कोई प्रदेशाध्यक्ष ही नहीं मानता है । इसी कारण जब इनके निर्देश पर इनके चेन्चुए पार्टी कार्यकर्ताओं को निर्देश जारी करतें हैं तो मज़ाक उड़ाया जाता है ये कहकर कि " नाथी के बाड़े से आमन्त्रण आया है " ऐसी छवि वाले प्रदेशाध्यक्ष की लीडरशिप में विधानसभा चुनाव तो क्या पंचायत चुनाव भी नहीं जीत सकते हैं । इसीलिए तो सर्वेसर्वा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बने हुए हैं । गहलोत को अपनी पार्टी की जीत का भरोसा इस कारण है कि उनकी प्रतिद्वंद्वी भाजपा का तो वैसे ही जनाजा उठा हुआ है दूसरा कारण ये है कि मुफ्त की रेवड़ियां से लेकर जिलों की जो सौगात उन्होंने दी है उससे वे मदमस्त हैं ।
कंगाली बदहाली की स्थिति से गुजरती हुई कार्यकर्ता विहीन कांग्रेस के सत्ता में रहते हुए भी बुरे दिन चल रहें हैं । इसलिए एक हजार दिन अपने प्रदेशाध्यक्ष कार्यकाल के पूरे करने के बाद भी मुख्यमंत्री की चरणवंदना के इलावा गोविंद डोटासरा की कोई उपलब्धि नहीं है। प्रदेश कांग्रेस कार्यलय में जो भी इक्का दुक्का चाय पीने वाले पदाधिकारी हैं वे स्वंय को बेताज बादशाह समझतें हैं । इन पदाधिकारियों की एक ही उपलब्धि है कि वो किसी का फोन नहीं उठा कर स्वंय को बड़ा मान बैठें हैं जो उनकी गलतफहमी बनी हुई है सरकार में उनकी दो टके की भी ईज्जत नहीं है ।
डोटासरा के चेन्चुए संगठन के पदाधिकारी जो स्वयं को तुर्रमखां समझते हैं उन्हें शान्ति धारीवाल जैसे वरिष्ठ मंत्री अपने बंगले से धकिया चुकें हैं । धारीवाल ने तो डोटासरा का ही सार्वजनिक कार्यक्रम में बैंड बजा दिया था । इसलिए डोटासरा की अपनी पार्टी की सरकार में कोई ईज्जत नहीं है । जब प्रदेशाध्यक्ष या मुख्यमंत्री प्रदेश कार्यालय में आते हैं तो ये चेन्चुए उज्ज्वल खादी की पोशाक में सजे धजे ऐसे मंडराते हैं जैसे संगठन का सारा भार ही इन्होंने अपने कंधों पर उठा रखा है ।
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