किसानों ने सरकार के संकेत को किया ख़ारिज
किसानों ने सरकार के संकेत को किया ख़ारिज
छोटा अखबार।
किसान संगठनों ने शनिवार को कहा कि केंद्र ने कृषि कानूनों का सुप्रीम कोर्ट के ज़रिए हल निकालने की जो बात कही है वो इस मुद्दे को लंबा खींच कर आंदोलन को पटरी से उतारने के लिए सरकार की एक चाल है। सभी यूनियनों ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट पर छोड़ने के सरकार के संकेत को ख़ारिज कर दिया है।
भारतीय किसान यूनियन के राज्य सचिव शिंगारा सिंह मान ने पत्रकारों को बताया कि सुप्रीम कोर्ट पर इस मुद्दे को छोड़ने का सुझाव बताता है कि सरकार चल रहे विवाद का हल खोजने में देरी करना चाहती है। उनका इरादा केवल इस मुद्दे को लंबा खींचना है और हमारी मांगों को पूरा नहीं करना है। सरकार किसान लोगों के आंदोलन को दबाना चाहती है। हमने पहले ही सरकार के सुझाव को ख़ारिज कर दिया है। मान ने कहा कि सरकार की मंशा बहुत स्पष्ट है। वे अदालतों को शामिल करके किसान आंदोलन को तोड़ना चाहते हैं।
शिंगारा सिंह कहते हैं कि बीकेयू अन्य संगठनों के साथ सभी विवादित कृषि कानूनों को वापस लिए जाने और सभी राज्यों में सभी फ़सलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकारी ख़रीद को एक क़ानूनी अधिकार बनाने के लिए मज़बूती से खड़ा है।
किसान मज़दूर संघर्ष समिति की पंजाब इकाई के महासचिव सरवन सिंह पंधेर ने कहा कि किसान संगठन अपने आंदोलन को तेज करने के लिए बिल्कुल तैयार हैं और उन्होंने 26 जनवरी को नई दिल्ली में प्रस्तावित 'ट्रैक्टर परेड' को सफल बनाने के लिए देश भर के किसानों और खेतिहर मजदूरों से अपील की है।
भारतीय किसान यूनियन के महासचिव हरिंदर सिंह ने कहा कि केंद्र ने कानून बनाए हैं और वो आसानी से उन्हें निरस्त भी कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट जाने की ज़रूरत नहीं है। सरकार को किसानों की मांग को सुनना चाहिए और कानूनों को तुरंत रद्द करना चाहिए।
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