मनरेगा कांग्रेस की नाकामियों का स्मारक —प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
मनरेगा कांग्रेस की नाकामियों का स्मारक —प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
ANIL TRIVEDI
छोटा अखबार।
मेरी राजनीतिक सूझ बूझ कहती है कि मनरेगा को कभी बंद मत करो। मैं ऐसी गलती नहीं कर सकता हूं। क्योंकि मनरेगा आपकी विफलताओं का जीता जागता स्मारक है। आजादी के 60 साल के बाद आपको लोगों को गड्ढे खोदने के लिए भेजना पड़ा। ये आपकी विफलताओं का स्मारक है और मैं गाजे-बाजे के साथ इस स्मारक का ढोल पीटता रहूंगा।
27 फरवरी 2015 को लोकसभा में कांग्रेस पार्टी पर गरजते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मनरेगा पर हंसी उड़ाई और कहा था कि मनरेगा कांग्रेस की नाकामियों का स्मारक है। इस बीच लोकसभा में मोदी के समर्थकों ने ठहाके लगाते हुए खूब तालियां बजाई थी।
प्रधानमंत्री ने लोकसभा में राजनीति का ज्ञान बांटते हुए और अपने समर्थकों में छाप छोड़ने के लिये कहा था कि मेरी राजनीतिक सूझ बूझ कहती है कि मनरेगा को कभी बंद मत करो। मैं ऐसी गलती नहीं कर सकता हूं। क्योंकि मनरेगा आपकी विफलताओं का जीता जागता स्मारक है। आजादी के 60 साल के बाद आपको लोगों को गड्ढे खोदने के लिए भेजना पड़ा। ये आपकी विफलताओं का स्मारक है और मैं गाजे-बाजे के साथ इस स्मारक का ढोल पीटता रहूंगा।
वहीं दूसारी ओर आज कोविड—19 महामारी के चलते देश जारी तालाबंदी में व्याप्त गंभीर संकट में मनरेगा मोदी सरकार को संकट मोचक योजना के रूप में नजर आई है। इस कारण मनरेगा का बजट बढ़ाते हुय देश में बढ़ी बेरोजगारी की समस्या का समाधान ढूंढ रहे हैं। सरकार ने मनरेगा को ढ़ाल बनाकर देश में बेराजगार भीड़ को गारंटी के साथ काम दिलाने का ठानी है। क्योंकि सरकार ये बखूबी जानती है कि उनके पास मनरेगा के अलावा ऐसा कोई मजबूत ढांचा या फिर नीति नहीं है जिसके जरिये उपरोक्त भवसागर पार किया जा सके।
आपका ध्यान आकर्षित करना चाहुंगा कि देश में मनरेगा की स्थापना में कई अर्थशास्त्रियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और आमजनता का बहुत बड़ा योगदान था। जिसको तत्कालीन सरकार ने अपरोक्त महानुभावों के योगदान को एक सूत्र में पिरो कर एक कानून बनाया जिसका नाम महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) है।
आज देश में इस योजना की चर्चाएं जोरो पर है क्योंकि प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत पैकेज की अंतिम घोषणा करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि इस वर्ष मनरेगा में अतिरिक्त 40,000 करोड़ रुपये दिए जाएंगे। इस योजना से 300 करोड़ व्यक्तियों के लिये मदद मिलेगी वहीं शहरों से लौट रहे प्रवासी मजदूरों को रोजगार भी मिलेगा। देश में बेरोजगार लोगों के लिये जिवन देने वाली योजना बन गई है। मनरेगा कानून के अनुसार रोजगार कि जितनी मांग होगी, उतने ही लोगों को रोजगार पड़ेगा सरकार को। इस लिये मेरा मानना है कि मनरेगा को आवंटित अतिरिक्त राशि को आर्थिक राहत पैकेज के रूप में नहीं देखना चाहिए। जबकि सरकार इसे राहत पैकेज के रूप में प्रचारित कर रही है।
इकोनॉमिक सूत्रों के अनुसार नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (एनआईपीएफपी) के प्रोफेसर एनआर भानुमूर्ति के विश्लेषण के अनुसार यदि सब कुछ इसी तरह से चलता रहा तो इस साल भारत की जीडीपी में 12.5 फीसदी की गिरावट आने की संभावना है। विश्लेषण के अनुसार यदि सरकार 2020-21 में घोषित बजट के अतिरिक्त जीडीपी का सिर्फ तीन फीसदी अलग से खर्च कर देती है तो अर्थव्यवस्था को संभालना आसान हो जाएगा।
ये बात भी सही है कि यदि सरकार खर्च बढ़ाती है तो वित्तीय घाटा भी बढ़ेगा, मुद्रास्फीति बढ़ेगी। वहीं यदि वृद्धि दर नीचे जाती है तो व्यापक आर्थिक संकट आएगा। लोगों की नौकरियां जाएंगी ओर तो ओर लोग आत्म हत्या भी करेगें। सरकार ने देश में उपजी महामारी के संकट से उबारने के जो राहत पैकेज घोषित किया है, उसमें सरकार का मूल खर्च जीडीपी का लग—भग एक फीसदी ही है। जबकि पैकेज जीडीपी का 10 फीसदी है। ज्यादातर अर्थशास्त्रियों और रेटिंग एजेंसियों आदि के विश्लेषण और आकलन यही तस्वीर पेश कर रहे हैं।
इन घोषणाओं की खास बात यह है कि हमें यह भी पता नहीं है कि जो भी जीडीपी का एक फीसदी खर्च करने की घोषणा हमारे देश की वित्त मंत्री ने की है वो इस साल के लिए निर्धारित बजट के अतिरिक्त खर्च होगा या फिर अलग-अलग योजनाओं के बजट में कटौती कर इसे उसी में समायोजित किया जाएगा।
इसलिए मेरा आंकलन यहां स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आत्मनिर्भर भारत पैकेज भारत की अर्थव्यवस्था को शायद ही गति प्रदान करें।
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