सरकार की समझदारी से, ऐसा न हो कि जरूरतमंदों को ही राशन न मिल पाए
सरकार की समझदारी से, ऐसा न हो कि जरूरतमंदों को ही राशन न मिल पाए
छोटा अखबार।
देश में कोरोना वायरस के बढ़ते संकम्रण को देखते हुए विशेषज्ञों और अर्थशास्त्रियों ने चिंता व्यक्त की है। इनका मानना है कि अगर सही तरीके से देश के लोगों को भोजन नहीं मुहैया कराया जाता है और दिहाड़ी मजदूरों की बढ़ती समस्याओं का समाधान नहीं किया जाता है, तो देश में गरीबी बढ़ने और भुखमरी का खतरा बढ़ सकता है। समाचार सूत्रों के अनुसार ख्यातनाम अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन, पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन और नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी ने कहा कि ये बात ठीक है कि सरकार को समझदारी से पैसे खर्च करना चाहिए लेकिन ऐसा न हो कि इस चक्कर में जरूरतमंदों को ही राशन न मिल पाए।
सेन, राजन और बनर्जी के अखबारों में छपे लेख में लिखा है कि हम भारतीय किसी बड़े स्तर के ट्रांसफर को लेकर चिंतित रहते हैं कि कहीं पैसा गलत हाथों में न चला जाए या कोई बिचौलिया इससे धनी न हो जाए। लेकिन इस महामारी और वैश्विक आर्थिक संकट में ये हमारी गलत चिंताएं हैं। कहा कि ये स्पष्ट हो गया है कि अभी लॉकडाउन लंबे समय तक चलेगा। ऐसे में सबसे बड़ी चिंता ये है कि कमाई का जरिया खत्म होने और वितरण प्रणाली में समस्याओं की वजह से बड़ी संख्या में लोग गरीबी या भुखमरी के शिकार हो सकते हैं। ये अपने आप में एक ट्रेजडी है और इसके अलावा लॉकडाउन आदेशों के उल्लंघन की वजह से रिस्क और बढ़ रहा है- भूखे लोगों के पास खोने के लिए बहुत कम है।
लेख में आगे लिखा कि हमें कम से कम इतना करने की जरूरत है ताकि लोगों को ये विश्वास हो कि समाज उनकी चिंता करता है और उनकी न्यूनतम देखभाल सुनिश्चित है। अर्थशास्त्रियों ने कहा कि ऐसा करने के लिए हमारे पास पर्याप्त संसाधन हैं। उन्होंने कहा कि मार्च 2020 में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) में 7.7 करोड़ टन अनाज पड़ा हुआ था जो कि बफर स्टॉक का तीन गुना है। आने वाले दिनों में अनाज के भंडारण की मात्रा बढ़ेगी ही क्योंकि रबी फसलों की खरीदी होने वाली है। इसलिए राष्ट्रीय अपातकाल के समय जो पहले के स्टॉक पड़े हैं उसे खाली किया जाना चाहिए, इसमें देरी करना बुद्धिमानी नहीं है।
तीनों ही अर्थशास्त्रियों ने अपने लेख में सरकार द्वारा प्रति व्यक्ति को हर महीने पांच किलो अतिरिक्त अनाज देने की योजना का स्वागत किया है। हालांकि उन्होंने कहा कि ये पर्याप्त नहीं है क्योंकि अगर लॉकडाउन जल्द समाप्त होता है तब भी अर्थव्यवस्था को खुलने में समय लग जाएगा। अर्थशास्त्रियों ने कहा कि अच्छी बात है कि सतर्कता अपनाई जाई लेकिन इस महामारी के समय में ये जरूरी नहीं। ऐसे में सही प्रतिक्रिया ये है कि सभी जरूरतमंदों को अस्थायी राशन कार्ड जारी किए जाएं- कम से कम छह महीने के लिए। जरूरतमंदों को राशन न देने का खामियाजा गैर-जरूरतमंदों को राशन देने से काफी बड़ा है।
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