विवाहित महिला को अनुकंपा नियुक्ति नहीं देना संविधान का उल्लंघन —हाईकोर्ट

विवाहित महिला को अनुकंपा नियुक्ति नहीं देना संविधान का उल्लंघन —हाईकोर्ट


छोटा अखबार।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने विवाहित महिलाओं को अनुकंपा पर नियुक्ति के मामले में कहा है कि सरकार की नीति समानता के अधिकार का हनन है। 
न्यायालय सूत्रों के अनुसार जस्टिस सुजॉय पॉल, जस्टिस जेपी गुप्ता और जस्टिस नंदिता दुबे की पीठ ने कहा कि अनुकम्पा के आधार पर नियुक्ति के लिए शादीशुदा पुत्री के नाम पर विचार न करने की सरकार की नीति संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।



हाईकोर्ट ने कहा है कि क्या अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के मामले में राज्य सरकार द्वारा तैयार की गई नीति के क्लॉज 2.2 और 2.4 को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 25 और 51(ए)(ई) का उल्लंघन कहा जा सकता है, जिसमें आश्रितों की निश्चित श्रेणी निर्धारित की गई है, जिसके तहत अविवाहित, विधवा और तलाकशुदा पुत्री को शामिल किया गया है। 
मध्यप्रदेश के सतना जिले की ग्राम खूटा निवासी मीनाक्षी दूबे ने विद्युत वितरण कंपनी में अपने पिता के निधन के बाद अनुकंपा नियुक्ति पाने के लिए आवेदन किया था।
कंपनी ने आवेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि राज्य की 12 दिसंबर, 2014 की नीति के तहत अनुकंपा नियुक्ति का लाभ सिर्फ पुत्र, अविवाहित पुत्री, विधवा पुत्री या तलाकशुदा पुत्री को ही दिया जा सकता है। कंपनी के इस फैसले के खिलाफ मीनाक्षी दुबे ने हाईकोर्ट का रुख किया था। 



पीठ ने कहा है कि लिंग के आधार पर भेदभाव के सभी प्रकार मौलिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों का उल्लंघन हैं और सरकार को महिलाओं के साथ भेदभाव को समाप्त करने के लिए कानून/नीति को संशोधित करने तथा महिला–विरोधी मौजूदा कानूनों, नियमों, रीति–रिवाजों और प्रथाओं को समाप्त करने के लिए उचित उपाय करने चाहिए।
पीठ ने कहा कि यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि संबंधित क्लॉज 2.2 एक हद तह विवाहित महिला को अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिए विचार किए जाने से वंचित करता है, यह समानता के अधिकार का हनन करता है और इसे सही नहीं ठहराया जा सकता।
क्लॉज 2.4 लाकर सरकार ने आंशिक तौर पर विवाहित बेटी के नाम पर विचार के अधिकार को मान्यता तो दी है, लेकिन यह अधिकार ऐसी बेटियों तक ही सीमित था, जिसका कोई भाई नहीं था। क्लॉज 2.2 मृतक सरकारी कर्मचारी की पत्नी/पति को पुत्र या अविवाहित बेटी को अनुकम्पा के आधार पर नौकरी के लिए नामित करने का विकल्प देता है। इसमें बेटे के नाम पर विचार करते वक्त उसके विवाहित होने को लेकर कोई जिक्र नहीं किया गया है, जबकि पुत्री के मामले में ‘अविवाहित‘ शर्त जोड़ा गया है। कोर्ट ने कहा कि यह शर्त बगैर किसी औचित्य के है और इसलिए यह मनमाना एवं भेदभावपूर्ण है।


 


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