श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी 21 हज़ार प्रति माह हो — सीटू
श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी 21 हज़ार प्रति माह हो — सीटू
छोटा अखबार।
ट्रेड यूनियनें नए इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड बिल को 'मालिकों के पक्ष में और मजदूरों के ख़िलाफ़ बता रही हैं। भारतीय ट्रेड यूनियनों की फ़ेडरेशन सीटू के महासचिव तपन सेन ने केंद्र सरकार पर श्रमिक विरोधी होने का आरोप लगाया है।
2 जनवरी, गुरुवार को केंद्रीय श्रम मंत्री संतोष गंगवार से ट्रेड यूनियनों ने मुलाकात की थी। ट्रेड यूनियनों के अनुसार केंद्रीय मंत्री गंगवार ने यूनियन प्रतिनिधियों को बताया था कि सरकार श्रमिकों की भलाई के लिए सभी कदम उठा रही है और लेबर कोड से जुड़ा क़ानून भी इसका हिस्सा है। बाद में 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने संयुक्त बयान जारी कर कहा था कि गंगवार ने उनकी 14 सूत्रीय मांगों में से किसी के समाधान का भरोसा नहीं दिया।
ट्रेड यूनियनों की प्रमुख मांगों में बेरोजगारी, न्यूनतम मजदूरी तय करना और सामाजिक सुरक्षा तय करना शामिल हैं। यूनियनें सभी श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी 21 हज़ार रुपये प्रति महीने तय करने की मांग कर रही हैं।
तपन का कहना है कि यह सरकार श्रमिकों को बंधुआ मज़दूर बनाना चाहती है। यह उद्योगपतियों की सरकार है और यह खुलकर ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस के नाम पर ऐसा कर रही है। केंद्र सरकार की श्रमिक विरोधी नीतियों के खिलाफ़ बुधवार 8 जनवरी को देशव्यापी हड़ताल की अपील करने वाली मजदूर यूनियनों ने दावा किया है कि हड़ताल में करीब 25 करोड़ लोग हिस्सा लेंगे। तब आपको हमारी ताक़त का अंदाज़ा होगा।
वहीं दूसरी ओर आरएसएस से जुड़ा भारतीय मज़दूर संघ बुधवार की हड़ताल में हिस्सा नहीं लेगा। संघ के नेता विरजेश उपाध्याय का कहना है कि ये कांग्रेस और वामपंथी दलों की एक राजनीतिक हड़ताल है।
अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ के सी.एच वेंकटचलम ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि केंद्र सरकार पूंजीपतियों के साथ है जिनका मक़सद बेईमानी करना है। ट्रेड यूनियन नेताओं के अनुसार बुधवार की हड़ताल में सरकारी कर्मचारी, बैंक और बीमा क्षेत्र के कर्मचारी शामिल होंगे। उन्होंने सिविल सोसाइटीज़ से भी समर्थन की अपील की है।
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