पेट्रोल-डीज़ल और एलपीजी के बढ़ सकते है दाम
छोटा अखबार।
ऊर्जा विशेषज्ञों के अनुसार अमरीका की सैनिक कार्रवाई से जो तनाव पैदा हुआ है। उससे भारत के लोगों की जेब पर असर पड़ने वाला है क्योंकि आने वाले दिनों में पेट्रोल-डीज़ल और एलपीजी की क़ीमतें बढ़ना तय है। भारत को तेल की आपूर्ति तो होगी, लेकिन क़ीमतें बढ़ेंगी।
भारत अमरीका और रूस से भी तेल मंगाता है। लेकिन भारत सबसे ज़्यादा तेल मध्य पूर्व के देशों से मंगाता है और इनमें इराक़ का नंबर सबसे पहला है। इसके अलावा सऊदी अरब, ओमान और क़ुवैत भी है। भारत को इसकी चिंता नहीं है कि तेल की सप्लाई में कोई रुकावट आएगी। भारत की चिंता तेल की क़ीमतों को लेकर है। अभी तेल की क़ीमत प्रति बैरल तीन डॉलर बढ़ गई है। भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए प्रति बैरल तीन डॉलर की क़ीमत बढ़ जाना बहुत बड़ी बात होती है। भारत में जो आम उपभोक्ता है, जो पेट्रोल-डीज़ल ख़रीदता है या एलपीजी ख़रीदता है या कंपनियाँ जो इन पर निर्भर हैं, उनके लिए ये अच्छी ख़बर नहीं है।
सरकार के लिए भी ये चिंता की बात है। क्योंकि तेल की क़ीमतें ऐसी समय में बढ़ रही हैं। जब सरकार के सामने वित्तीय घाटे की चुनौती बनी हुई है। रुपए पर भी दबाव बढ़ेगा। रुपए के लिए अच्छी ख़बर नहीं है। आने वाले सप्ताह में भारतीय उपभोक्ताओं के लिए यह चिंता की बात है। ये भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भी चिंता की बात है।अमरीका ने ये कार्रवाई की तो इराक़ में है ईरान के ख़िलाफ़। लेकिन इसका सबसे प्रतिकूल असर भारत पर पड़ने वाला है। भारत के पास इस मामले से निपटने के लिए अमरीका जैसा विकल्प नहीं है। अमरीका आज की तारीख़ में अपने यहाँ 12 मिलियन बैरल तेल का उत्पादन करता है। इसके अलावा दुनिया की सबसे बड़ी तेल कंपनियाँ अमरीका की हैं। जो दुनियाभर में जाकर तेल का खनन करती हैं। तेल का आयात-निर्यात करती हैं। तेल का उत्पादन करती हैं। पूरी दुनिया में तेल का व्यापार अमरीकी डॉलर में चलता है और अमरीका इससे काफ़ी कमाता है।
दूसरी तरफ़ भारत 85 फ़ीसदी तेल का आयात करता है। भारत में तेल की मांग भी लगातार बढ़ रही है। तेल की मांग प्रति वर्ष चार से पाँच फ़ीसदी बढ़ रही है। गाड़ियों की संख्या बढ़ रही है। 85 फ़ीसदी तेल के अलावा भारत 50 फ़ीसदी गैस भी आयात करता है। गाँव-गाँव में उज्ज्वला स्कीम के कारण जो एलपीजी दी जा रही है। वो भी आयात होती है। दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारत एक ऐसा देश है। आयातित तेल और आयातित गैस पर बहुत ज़्यादा निर्भर है। चीन की लगभग 50 फ़ीसदी है। इसलिए मध्य पूर्व में जब भी ऐसी बात होती है। भारत पर संकट के बादल मँडराने लगते हैं। भारत की अर्थव्यवस्था कुल मिलाकर ऑयल इकॉनॉमी है। भारत ने वैकल्पिक ऊर्जा को दोहन जैसा करना चाहिए था, वैसा किया नहीं है। हम अभी कोयला आयात कर रहे हैं, यूरेनियम आयात कर रहे हैं, सौर ऊर्जा के लिए जो उपकरण हैं, वो भी आयात किए जा रहे हैं।
जब भी तेल की क़ीमतें बढ़ती हैं तो उभरती हुई अर्थव्यवस्था पर उसका काफ़ी असर होता है। रूस की बात करें तो रूस के पास अपना बहुत तेल है। ब्राज़ील के पास अपना बहुत तेल है। चीन की निर्भरता 50 फ़ीसदी है, अपना उनके पास उतना तेल नहीं है। लेकिन उन्होंने दुनियाभर में तेल के भंडार ख़रीद रखे हैं। जापान भी लगभग पूरा तेल आयात करता है। लेकिन उसने भी दुनियाभर में तेल के भंडार ख़रीद रखे हैं और वो विकसित अर्थव्यवस्था है।
जब भी ऐसी स्थिति होती है तो सबसे बड़ा ख़तरा भारत के लिए पैदा हो जाता है। भारत की ऊर्जा नीति ऐसी नहीं है। जिससे उसकी तेल पर निर्भरता कम हो सके।
अगर हम पाकिस्तान की बात करें तो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था अंदर से बिल्कुल टूट चुकी है। उसकी अर्थव्यवस्था काफ़ी छोटी है। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था मात्र 280 बिलियन डॉलर की है। अगर आप रिलायंस ग्रुप और टाटा ग्रुप के टर्नओवर को मिला दें तो ये लगभग पाकिस्तान के बराबर होगा। इराक़ बिना अमरीका के आगे नहीं बढ़ सकता है। इराक़ की पूरी अर्थव्यवस्था तेल पर चलती है। इसलिए इराक़ तो तेल का उत्पादन बढ़ाना चाहता है और इसके लिए उसे अमरीका के साथ की ज़रूरत है। इराक़ शिकायत करेगा, विरोध करेगा, लेकिन अमरीका के आगे इराक़ कहीं टिकता नहीं है। अमरीका ने जो कुछ भी किया है, वो ज़रूरी नहीं कि वे इराक़ से पूछ कर करते हैं। वे अपने हिसाब से करते हैं। जैसा उन्होंने पाकिस्तान में ओसामा बिन लादेन के मामले में किया था। इसलिए इराक़ मामले में ज़्यादा कुछ कर पाएगा, ऐसा नहीं होगा। उसके पास तेल के भंडार तो हैं। लेकिन वो एक कमज़ोर मुल्क है।
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