2019 में भाजपा को पांच राज्यों का झटका

2019 में भाजपा को पांच राज्यों का झटका


अनिल त्रिवेदी
छोटा अखबार।
साल 2019 सप्ताह बाद समाप्त होने जा रहा है। साल 2019 में मोदी की पुन: ताजपोशी हुई तो वहीं दूसरी ओर पांच राज्यों में गूगली भी। मोदी और शाह ने चुनावों में प्रचार के दौरान खुलकर सेना, हिन्दु, हिन्दुस्तान, धारा 370 और अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का ज़िक्र किया। लेकिन शायद राज्य के लोगों को ये पसन्द नहीं आया और इसी कारण भाजपा को पांच राज्यों के चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा। भव्य राम मंदिर बनाने की बात कहकर झारखंड के मतदाताओं का मन मोहने की कोशिश की गई। लेकिन चुनाव नतीजे सामने आने के बाद भाजपा को हार का सामना करना पड़ा।



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मेरा मानना है कि चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा के नेताओं ने देश में व्याप्त आर्थिक मंदी जैसे मुद्दों पर जनता की समस्याओं को समझने की जगह राम मंदिर जैसे मुद्दों पर लोगों का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की गई और कहा गया कि अयोध्या में जल्द ही भव्य राम मंदिर बनाया जाएगा। अब जरा सोचने की बात है कि जिस व्यक्ति का कारोबार नोटबंदी और जीएसटी के चलते बंद होने की कगार पर हो वो भला भव्य राम मंदिर के मुद्दे पर कैसे मतदान करेगा?



सामान्यत: देखने को मिला है कि चुनावों में भाजपा के प्रदेश स्तर के संगठन पर सवाल उठते रहे हैं।अलग-अलग मौक़ों पर भाजपा नेताओं की ओर से बाग़ी तेवर भी दिखते रहे हैं। भाजपा की हार के लिए आपसी कलह को भी काफ़ी हद तक ज़िम्मेदार माना जा सकता है।



मेरा यह भी मानना है कि राष्ट्रीय स्तर परभाजपा मोदी के व्यक्तित्व की वजह से कितने ही वोट हासिल करे। लेकिन स्थानीय स्तर पर पार्टी का संगठन कमज़ोर होता हुआ दिख रहा है। बीते कुछ समय में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा में प्रदेश स्तर पर आपसी कलह खुलकर सामने आई। विधानसभा चुनावों में इस बात का भी फरक पड़ता है कि राज्य स्तर पर पार्टी के शीर्ष नेता की छवि कैसी है। जैसे राजस्थान में वसुंधरा राजे को ही ले लिजीए। 


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मैं पिछले कई बरसों से देख रहा हूं कि विधानसभा और लोकसभा में भाजपा की जीत को अमित शाह और नरेन्द्र मोदी नेतृत्व को श्रेय दिया जाता रहा है। ऐसे में ये सवाल उठना लाजमी है कि क्या बीते पांच विधानसभा चुनावों में नरेन्द्र मोदी और अमित शाह का नेतृत्व नाकाम रहा है या जादू फिका पड़ता नजर आ रहा है। मेरा स्पष्ट रूप से मानना है कि राज्यों में हार के लिये केंद्रीय नेतृत्व ज़िम्मेदार है।



मेरा यह भी मानना है कि राज्यों में मुख्यमंत्री का पद संभाल रहे व्यक्तियों की सार्वजनिक रूप से तानाशाह हो जाना भाजपा की हार की एक ओर वजह है। राजस्थान में बीजेपी के हल्कों में वसुंधरा के लिए पर्याप्त समर्थन नहीं था। आम जनता में भी नकारत्मकता थी। लेकिन इसके बावजूद केंद्रीय नेतृत्व ने कोई क़दम नहीं उठाया।


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कुछ महिनों के बाद देश की राजधानी दिल्ली सहित बिहार और पश्चिम बंगाल में चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में भाजपा इन राज्यों में हार की ग़लतियों से सबक लेती है या नहीं ये तो आने वाला समय ही बता पायेगा।


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